बहाउल्‍लाह का प्रकटीकरण

विश्‍व के धर्मों के संस्‍थापकों की शिक्षाओं ने साहित्‍य, वास्‍तुकला, कला और संगीत में अपार उपलब्धियों को प्रोत्‍साहित किया है। उन्‍होंने तर्क, विज्ञान और शिक्षा के बढ़ावे को पोषित किया है। उनके नैतिक सिद्धांत मानवीय संबंधों को नियमित व उन्‍नत करने वाले अन्‍तर्राष्‍ट्रीय कानून कायदों में परिवर्तित हो गये हैं। इन बेजोड़ रूप से सम्‍पन्‍न व्‍यक्तियों को बहाई लेखों में ‘‘ईश्‍वर के अवतार’’ उल्लिखित किया गया है, और इनमें शामिल हैं (अन्‍य के साथ) कृष्‍ण, मूसा, ज़रथुस्त, बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्‍मद, बाब और बहाउल्‍लाह। इतिहास इस बात के असंख्‍य उदाहरण प्रस्‍तुत करता है कि किस प्रकार इन विभूतियों ने सम्‍पूर्ण जन समुदायों में प्रेम, क्षमा, निर्माण, अपार साहस, पूर्वाग्रह पर विजय प्राप्‍त करने व सामान्‍य हित के लिये त्‍याग करने की क्षमता को जागृत और मानवता की सहज दुर्जनता के आवेग को अनुशासित किया है। इन उपलब्धियों को मानवजाति की सामान्‍य आध्‍यात्मिक विरासत के रूप में मान्‍य किया जा सकता है।

बहाउल्‍लाह – दैविक रूप से उत्‍प्रेरित नैतिक शिक्षक, जिन्‍होंने मानवता को युग-युग से मार्गदर्शित किया है, की श्रृंखला में नवीनतम – ने उद्घोषित किया कि मानवता अब दीर्घ प्रतीक्षित वयस्‍कता के स्तर के समीप आ रही है : सामाजिक व्‍यवस्‍थापन की वैश्विक स्‍तर पर एकता। वे मानवमात्र की एकता की परिकल्‍पना प्रस्‍तुत करते हैं, एक नैतिक ढांचा और शिक्षाएं जो कि विज्ञान व धर्म के सामंजस्‍य पर आधारित हैं, जो कि प्रत्यक्ष रूप से आज की समस्‍याओं को संबोधित करती हैं। वे मानव के सामाजिक उद्विकारन के अगले स्‍तर की राह बताते हैं। वे दुनिया के लोगों के लिये एक एकीकरण का वृत्‍तांत प्रस्‍तुत करते हैं, जो कि वास्‍तविकता को समझने के लिये हमारी वैज्ञानिक समझ के अनुरूप है। वे हमारी सार्वलौकिक मानवता को स्‍वीकार करने के लिये, अलगाव व पूर्वाग्रह समाप्‍त करने के लिये और एक साथ आने के लिये हमारा आह्वान करते हैं। ऐसा करके सभी लोग और प्रत्‍येक सामाजिक समूह अपने स्‍वयं के भविष्‍य के निर्माण, और अन्‍तत: एक शान्तिपूर्ण वैश्विक सभ्‍यता के नायक हो सकते हैं।

फिल्म क्लिप: एक प्रकटित होते धर्म और मानवजाति की परिपक्वता पर कुछ विचारDOWNLOAD

बहाउल्‍लाह के संग्रहीत लेखों को ‘उनके’ अनुयायियों के द्वारा ईश्‍वर का प्रकटीकरण माना जाता है। वे बहाई धर्म का आधार बनाते हैं। ‘उनके’ लम्‍बे समय के निर्वासन के दौरान बहाउल्‍लाह ने 100 पुस्‍तकों से अधिक के बराबर लेख प्रकट किये थे। इस विशाल सागर से नीचे कुछ उद्धरण दिये गये हैं।

‘पुरातन अस्तित्‍व’ के ज्ञान के द्वार मनुष्‍य के समक्ष सदैव से बंद रहे हैं और सदैव बंद रहेंगे। ‘उसके’ पावन दरबार में किसी मानव की समझ की पहुंच कभी नहीं होगी। फिर भी, ‘उसकी’ कृपा के संकेत और ‘उसकी’ प्रेमपूर्ण दयालुता को प्रमाण के रूप में, ‘अपने’ मनुष्‍यों के बीच ‘उसके’ दिव्‍य मार्गदर्शन के दिवा नक्षत्रों’, ‘उसकी’ दिव्‍य एकता के प्रतीकों को प्रकट किया और यह आदेश दिया कि इन पावन ‘अस्तित्‍वों ‘ का ज्ञान ‘उसके’ स्‍वयं के ‘स्‍व’ ज्ञान के समान है।(बहाउल्‍लाह के पावन लेखों से चयन)

ये पावन दर्पण... सभी, ‘उसके’ प्रतिनिधि हैं जो कि ब्रह्माण्‍ड का केन्‍द्रीय ‘प्रकाशग्रह’, उसका ‘सार-तत्‍व’ और अन्तिम उद्देश्‍य है। उससे उनका ज्ञान व शक्ति उत्‍पन्‍न होती है, उससे उनकी प्रभुसत्‍ता व्‍युत्‍पन्‍न होती है।(किताब-ए-ईकान)

अचूक मार्गदर्शन के प्रकाश द्वारा अग्रसर होते हुए, और सर्वोच्‍च प्रभुसत्‍ता से युक्‍त होकर उन्‍हें ‘उनके’ शब्‍दों के प्रयोग, उनकी त्रुटिरहित दया और ‘उनके’ प्रकटीकरण की शुद्ध करने वाली बयार के द्वारा प्रत्‍येक आकांक्षित हृदय तथा ग्रहणशील चेतना को दुनियावी चिन्‍ताओं व सीमाओं के कूड़े व धूल से स्‍वच्‍छ कर देने के लिये अधिकृत किया गया है।(बहाउल्‍लाह के पावन लेखों से चयन)

यह अनन्‍त काल से अनन्‍त काल तक, ईश्‍वर का अपरिवर्तनीय धर्म है।(किताब-ए-अक़दस)

‘सर्वज्ञाता चिकित्‍सक ने उसकी अंगुली मानवजाति की नाड़ी पर रख दी है। ‘उसने’ बीमारी समझ ली है और ‘उसकी’ अचूक बुद्धिमत्‍ता द्वारा उपचार का नुस्‍खा दे दिया है। प्रत्‍येक युग की अपनी समस्‍या होती है और प्रत्‍येक आत्‍मा की अपनी अभिलाषा। विश्‍व को वर्तमान में अपने कष्‍ट निवारण के लिये जिस उपचार की आवश्‍यकता है, वह कभी भी आने वाले युग की आवश्‍यकता के समान नहीं हो सकती। उत्‍सुकतापूर्वक उस युग की आवश्‍यकताओं पर ध्‍यान दो जिसमें तुम जी रहे हो और अपने विचारों को उसकी अनिवार्यताओं व आवश्‍यकताओं पर केन्द्रित करो।(एकता का मंडप-वितान)

यह वह ‘दिन’ है जब ईश्‍वर की सर्वाधिक उत्‍कृष्‍ट कृपाएं मनुष्‍यों पर बरसा दी गई हैं; वह ‘दिन’ जब उसकी महान दया सभी सृजित वस्‍तुओं पर उडेल दी गई है। यह विश्‍व के सभी लोगों के लिये आवश्‍यक है कि अपने मतभेद मिटा दें और पूर्ण एकता व शांति के साथ ‘उसकी’ देख-रेख और प्रेमपूर्ण दयालुता के वृक्ष की छाया तले निवास करें।(बहाउल्‍लाह के पावन लेखों से चयन)

प्रभु ने सम्‍पूर्ण विश्‍व की निरोगता के लिये जो सर्वश्रेष्‍ठ उपचार तथा सर्वाधिक शक्तिशाली साधन उपलब्‍ध कराया है, वह उसके सभी लोगों का एक ही सार्वभौतिक ध्‍येय, एक ही सामान्‍य धर्म में संघटित हो जाना है।(युगावतार के आह्वान)

‘‘तुम एक ही वृक्ष के फल, तथा एक ही शाखा की पत्तियां हो। एक-दूसरे के साथ सर्वाधिक प्रेम व सामंजस्‍यपूर्ण, मित्रतापूर्ण तथा भाई चारे का व्‍यवहार करो। वह जो दिवानक्षत्र का सत्‍य है, मेरा साक्षी है। एकता का प्रकाश इतना शक्तिशाली है कि वह सम्‍पूर्ण धरती को प्रकाशित कर सकता है।’’(भेडिया-पुत्र के नाम पत्र)

‘‘सम्‍पूर्ण धरती एक देश है और मानवजाति उसके नागरिक’’(बहाउल्‍लाह की पातियां, लौह-ए-मकसूद)

‘‘वे जो सच्‍चाई ओर निष्‍ठा को धारण किए हुए हैं उन्‍हें धरती के सभी लोगों तथा नस्‍ल के साथ आनन्‍द व तेजस्विता के साथ मित्रता करनी चाहिये, लोगों के साथ मेल-जोल ने एकता व मैत्री को बढ़ावा दिया है और आगे भी बढ़ावा देना जारी रखेंगे, जो विश्‍व की व्‍यवस्‍था के संरक्षण और राष्‍ट्रों के पुनरूद्धार में सहायक है।’’(बहाउल्‍लाह की पातियां, तराज़ात)

‘‘अलगाव से अपनी आँखें मूंद लो, तब अपनी निगाह एकता पर टिका दो। जो मानवजाति के कल्‍याण व शान्ति की ओर ले जाये उसमें दृढ़तापूर्वक लगे रहो।’’(बहाउल्‍लाह की पातियां, कलिमात-ए-फिरदौसियेह)

‘‘उसे दूसरों के लिये वह नहीं चाहना चाहिये, जो वह स्‍वयं के लिये नहीं चाहता, न ही वह वायदा करना चाहिये जो वह पूरा नहीं करता।’’(किताब-ए-ईकान)

‘‘मनुष्‍य को बहुमूल्‍य रत्‍नों की खान समझो। केवल शिक्षा ही उसके खजाने को उजागर कर सकती है और मानवजाति को उससे लाभ पहुंचा सकती है।’’(बहाउल्‍लाह की पातियां, लौह-ए-मकसूद)

‘‘ज्ञान मनुष्‍य के जीवन के पंख हैं, और उसके उत्‍थान की एक सीढ़ी। प्रत्‍येक के लिेय उदसे प्राप्‍त करना आवश्‍यक है।’’(बहाउल्‍लाह की पातियां, तजल्‍लीयात)

समृद्धि में उदार बनो और विपत्ति में कृतज्ञ बनो। अपने पड़ोसी के विश्वास के योग्य बनो और उसे प्रसन्नता तथा मित्रता के भाव से देखो। निर्धनों के लिये खजाना और धनवानों के लिये सचेतक बनो, अभावग्रस्तों के अभावहर्ता और प्रतिज्ञापालक बनो। तुम्हारा निर्णय न्यायपूर्ण हो और तुम्हारी वाणी में संयम हो। किसी भी मनुष्य के प्रति अन्याय मत करो और सब के प्रति विनम्रता दिखलाओ। अंधकार में भटकने वालों के लिये दीपक के समान बनो, शोकमग्नों के लिये आनन्द, प्यासों के लिये एक सागर और विपत्ति में पड़े हुये लोगों के लिये आश्रय बनो, अन्याय से पीड़ित लोगों के रक्षक और आश्रयदाता बनो। ईमानदारी और सदाचारी के कारण तुम्हारे सभी कार्य औरों से अनूठे हों। अनजाने को घर का अपनापन दो, कष्टपीड़ितों के लिये शीतल मरहम, संत्रस्तों के लिये शक्ति के स्तम्भ बनो। नेत्रहीनों के लिये नेत्र और पथभ्रष्टों के भटकते पांव के लिये पथदर्शी प्रकाश बनो। सत्य के मुखड़े के आभूषण, वफा के माथे के मुकुट, सदाचार के मंदिर के स्तम्भ, मानवता की देह के प्राणवायु, न्याय की सेनाओं की ध्वजा, सद्गुणों के क्षितिज के जगमगाते सितारे, मानव-हृदय की धरती के लिये ओसबिन्दु, ज्ञान के महासागर के जहाज, प्रभु की अक्षय सम्पदाओं के गगन के सूर्य, प्रज्ञा के मुकुट के रत्न, अपनी पीढ़ी के आकाश के प्रखर प्रकाश और विनम्रता के वृक्ष के फल बनो।(भेडिया-पुत्र के नाम पत्र)

बहाउल्लाह का जीवन

बहाउल्‍लाह की शिक्षाओं का क्रियान्वयन

धर्म का नवीनीकरण